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मारे गए कथित नक्सलियों के साथी पहुंचे कलेक्टर-एसपी दफ्तरः बोले- हम रस्सी लेने जंगल गए थे, नक्सली बताकर मार दिया, न्याय की लगाई गुहार..!

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क्या सच में फ़र्ज़ी थी कांकेर नक्सल मुठभेड़? बच कर निकले 2 ग्रामीणों ने किया ये दावा..!

कांकेर नक्सल मुठभेड़ बच कर निकले 2 ग्रामीणों ने किया ये दावा  25 फरवरी दिन रविवार को कांकेर  जिले के कोयलीबेड़ा इलाके के हुरतराई जंगल में मुठभेड़ की खबर सामने आई थी. पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने 3 माओवादियों को मार गिराया है. जबकि मारे गए 3 लोगों को ग्रामीण आम नागरिक बता रहे हैं. घटना के तीन दिन बीत जाने के बाद आज वो दो शख्स भी सामने आए जो मुठभेड़ के दौरान वहां पर मौजूद थे. उनका कहना है वह नक्सली नहीं आम ग्रामीण है. पुलिस उन्हें नक्सली बता रही है. इस संबंध में उन्होंने जिला मुख्यालय पहुंच कर प्रशासन व पुलिस को ज्ञापन सौंपा है.
नक्सल मुठभेड़ में बच कर निकले दो ग्रामीण आए सामने
ग्रामीणों और कथित मृतक माओवादियों के परिजनों के साथ जिला मुख्यालय पहुंचे मुकेश और सुबार सिंह का कहना है वह सिर्फ आदिवासी ग्रामीण है. इस घटना में कुल 5 लोग जिसमें मारे गए जिसमें कथित रूप से 3 माओवादी बताए जा रहे हैं. 24 फरवरी दिन शनिवार को सभी जंगल से तेंदूपत्ता बांधने के लिए रस्सी लेने गए थे. 25 फरवरी दिन रविवार को सुबह अनिल और 2 अन्य खाना बना रहे थे. इस दौरान वह उनसे तकरीबन कुछ दूरी पर रस्सी काट रहे थे. तभी गोलियों की आवाज आने लगी. गोलियों की आवाज सुन वह वहां से भाग निकले और दूसरे दिन शाम में घर पहुंचे.
घर पहुंचने पर जानकारी मिली कि अनिल और दो अन्य को मुठभेड़ में मारकर नक्सली बताया जा रहा है. जबकि ना मारे गए तीनों में से हम दोनों नक्सली नहीं है. पुलिस मुकेश के पांव में गोली लगने की बात कह रही है. जबकि मुकेश पूरी तरह से सुरक्षित है. उन्हें डर है कि पुलिस उन्हें माओवादी बताकर गिरफ्तार न कर ले. इसलिए वह खुद ही परिजनों के साथ पहुंच कर पुलिस व प्रशासन को ज्ञापन सौंप कर न्याय की गुहार लगा रहे हैं.
तेंदू पत्ता संग्रहण का मौसम शुरू होने वाला है और इसी वजह से तीनों पेड़ों की छाल और तने और रस्सियां लेने के लिए जंगल में गए थे… वे दो दिनों के लिए गए थे इसलिए अपने साथ खाना पकाने के खातिर चावल और बर्तन भी ले जा रहे थे.
“हम नक्सली नहीं, विधानसभा चुनाव में कर चुके है वोट”
मुकेश बताते हैं कि उनके पास वो सभी सरकारी दस्तावेज है जो उनकी पहचान बताने के लिए काफी है. उन्हें सरकारी योजना का लाभ भी मिलता है. वह गांव में रहकर खेती किसानी का कार्य करते है. उन्होंने कुछ महीने पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में भी वोटिंग की है. उनका नक्सल संगठन से कोई संबंध नहीं है. पुलिस उनपर और मारे गए लोगों पर गलत आरोप लगाकर सभी को नक्सली बता रही है.

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