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छेर-छेरा”कोठी के धान ला हेरते हेरा

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छेर-छेरा” कोठी के धान ला हेरते हेरा

: जांजगीर-चांपा – सोमवार को छत्तीसगढ़ का एक और बड़ा पर्व छेर-छेरा है। छत्तीसगढ़ में यह अन्न दान का पर्व माना जाता है। इस पर कल सुबह से ही गांव गांव और गली गली में बच्चों तथा युवकों की दर्जनों टोलियां एक एक घर में दस्तक देकर यह कहते मिल जाएंगे.. छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेरते हेरा.. छोटे-छोटे बच्चों की टोलियां घर घर से धान और चावल का दान लेकर सीधे केंवटिन से मुर्रा खरीद कर मिल बांटकर खाते है। किशोर वय के छोकरों, नवयुवकों और युवकों तथा उनसे भी बड़ी उम्र के लोगों की टोलियां झोले लेकर गांव की गली गली में छेरछेरा का शोर करते हुए घूमती हैं। गरीब अमीर हर कोई घर के दरवाजे पर आने वाली इन टोलियों को यथा धान चावल और पैसे का दान किया करते हैं। ऐसा कोई घर नहीं होता जहां से छेरछेरा (कूटने)मांगने वालों को खाली हाथ लौटना पड़े।

गांव की रामायण और कीर्तन मंडली आ आज के दिन छेरछेरा कूट कर दान में मिले धान अथवा चावल को प्रदेश के राजा कल्याण सहाय मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्ध कला की शिक्षा प्राप्त करने के लिए 8 साल तक राज्य से दूर रहे। इसके बाद जब कल्याण सहाय राजा वापस आए तो प्रजा में उनकी खुशी में दान पुन कर राजा के मंगल कामना की। कहते हैं कि तभी से इसी दिन छेरछेरा पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई। एक और जनश्रुति है कि एक समय इस क्षेत्र में घनघोर अकाल पड़ गया था तब आदि देवी शक्ति शाकंभरी माता ने भक्तों की पुकार पर प्रगट होकर छत्तीसगढ़ को अन्य फल फूल और औषधि का भंडार प्रदान किया इससे अकाल ग्रस्त ऋषि मुनि सहित आम जनता का दुख दर्द दूर हो गया। किसी दिन की याद में छेरछेरा मनाए जाने की बात भी जनश्रुति में कही जाती है।

बाहर हाल पौष पूर्णिमा के अवसर पर आप भी अपने घर में ना बैठ कर अपने साथियों की टोलियों के साथ निकल जाएं छेरछेरा उस कूटने (मांगने) के लिए। और इससे इस मैदान से मिली राशि को समाज की भलाई में लगा दें।

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